Friday, June 12, 2015

प्रेम : संवेदना या भावनाओं की आवश्यकता

आज एकदम से जब प्रेम के बारे मैं बात कर रहे थे तो एहसास हुआ कि आज प्रेम सिर्फ एक संवेदना नहीं बल्कि एक प्रकार से भावनाओं की आवश्यकता बन ति दिखाई दे रही हैं। कुछ साल पहले इसी विषय पर चर्चा करते समय कुछ लोगों का कहना था की यह एक आकर्षण है और इसमें हमेशा धोखा दिया जाता हैं। 

प्रेम या प्यार पर कभी भी खुलकर बात नहीं होती। मगर इस विषय पर आधारित अधिकतर आधुनिक हिंदी मराठी धारावाहिक हर घर में हर दिन पूरे परिवार के साथ मिलकर देखी जाती हैं। हमारे इस समाज ने इन धारावाहिक के किरदारों को स्वीकार कर इन्हें अपने घरों में ओर दिलों में जगह दी है लेकिन अपने ही परिवार के सदस्य जो प्रेम के इस भवर में फसे हैं उन्हें अपने जीवन से ही बेदखल कर दिया है।


प्रेम के इस चक्रव्यूह फसे युवा पीढ़ी भी कई बार अति संवेदशिल होती दिखाई पड़ती है। ऐसा क्यों हो रहा है? प्रेम अगर एक भावना है तो इसे समझना होगा और स्वीकार करना होगा। 
प्रेम का संबध उम्र से करना चाहिए? क्योंकि हमने युवा काल को यह कहते हुए बदनाम किया है कि "सोला बरस की बालि उमरिया" या फिर मराठी में "सोलाव वरिस धोक्याच ग बाईं धोक्याच"। 
अपनी जिंदगी के अंत में भी लोगों को किसी अपने की तलाश रहती है। उन्हें भी खुलकर अपने प्यार का इजहार करना होता है लेकिन समाज इसे मान्यता नहीं देता।
कल ही एक दोस्त ने कहा "यह उम्र ही ऐसी है कि किसी का सहारा तो चाहिए। कोई तो हो जिससे सारी बातें कर सकें।कोई तो हो जिससे थोड़ी शरारत कर सके।" मुझे लगता हे की उसे उम्र की जगह वक्त कहना चाहिए था। क्योंकि हर किसी के जीवन में ऐसा वक्त आता है कि हम भरी मैफिल मे अकेला महसूस करते है। हमें कोई अपना दर्द समझने वाला व्यक्ति पास चाहिए होता है।
यही बात मुझे दोराहे पर खड़ी कर पूछती है कि क्या प्रेम एक एहसास , संवेदना या फिर जरूरत है भावनाओं को सहलाने की?
इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशने की कोशिश कर रहा हूँ मेरी पहली कहानी में -------
"प्राजक्ता- प्यार का एक अधूरा एहसास"
                                                                                                                                        ---- अल्केश अहिरे

बिन प्रेताची अंत्ययात्रा...

आठवणींच्या सावलीत सजवलेली तिरडी आप्तस्वकीयांच्या खांद्याचा भार होऊन अखेरची शोभायात्रा निघाली... एका कोपऱ्यात बसून मी ही अनुभवली बिन दे...